हम सबकी सोच अलग अलग होती है। सोच अलग होना कोई बुरी बात नहीं है। वैसे मैं बता दू की मुझसे विपरीत सोच वाले लोगो का ना सिर्फ मैं आदर करती हूं बल्कि मुझे उनसे बात करना भी पसंद है, क्योंकि अगर हम खुले दिमाग से उनकी बात सुने तो इनसे कुछ सीख सकते है। सोचो अगर हम सब एक जैसा सोचने लगे तो जिंदगी कितनी नीरस हो जायेगी, जब तुम कुछ बोलोगे तो मैं कहूंगी हा और मैं कुछ बोलूंगी तो तुम कहोगे हा, तो बात करने में क्या मजा आयेगा।☺️
इसी बात पर मैं अपने जीवन का एक किस्सा बताती हूं। बात 2012 के दिवाली के आस पास की है। एक लड़की मेरे साथ रहा करती थी। ये लड़की बहुत साफ दिल की अच्छी लड़की है और मेरी अच्छी दोस्त थी, (अब हम अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त है तो कॉन्टैक्ट में नही है ) लेकिन उसकी और मेरी सोच में जमीन आसमान का अंतर था। वो एमबीए थी, काफी महत्वाकांक्षी थी और पैसों को काफी महत्व देती थी। वह काफी अमीर घर से भी थी। उसने कभी रसोई घर का मुंह तक नही देखा था। वैसे रसोई में तो मेरी माता ने भी नही जाने नही दिया था लेकिन मिडिल क्लास फैमिली में लड़कियों को थोड़ा बहुत खाना बनाना सिखा ही दिया जाता है। फिर घर के बाहर जब जाते है तो साथ के लोगो से और भी सीख लेते है। पर इस लड़की की सोच इस मामले में भी अलग थी, यह लड़की कुछ सीखना ही नही चाहती थी।
मैने एक दो बार समझाने की कोशिश की तो उसने कहा की, “यह मेरे बस की बात नहीं है और जरूरत भी क्या है। वैसे भी पैसे फेंको तो सब कुछ मिल जाता है। अच्छी बाई भी मिल जाती है और अगर वो ना हो तो बाहर रेस्तरां और लॉन्च होम तो होते ही है।”
मैने कहा की, “देखो तुम्हारी अपनी सोच है चूंकि तुम मेरी अच्छी दोस्त हो तो मैं ये तुमसे कह रही हू की लड़का हो या लड़की थोड़ा बहुत खाना बनाना और अपने काम करना आना चाहिए, कभी मुसीबत पड़ी तो काम आता है, मुझे मेरे घरवालों ने बचपन से यही सिखाया है।”
खैर उस लड़की ने अपने काम के लिए बाई लगाई, पर मैने नही क्योंकि मैं बाई के टाइम टेबल में बंधना नही चाहती थी।
उस दिवाली मैं अपने घर नही जा पाई। वो लड़की घर तो गई पर उसे भी जल्दी आना पड़ा। उसी समय किसी बड़े नेता की मृत्यु हो गई जिनका हम सब बहुत आदर करते आए है। इस वजह से शहर में कर्फ्यू लग गया। बाहर एक भी दुकान नही खुली थी, यहा तक की लोगो ने दो के लिए सब्जी दूध भी स्टोर कर लिए थे।
वह लड़की मेरे पास आई और कहने लगी, “वर्तिका, आज बाई नही आयेगी।
मैने कहा,” अच्छा, फिर अब”
उसने कहा, “बाहर ना कोई लंच होम खुले है ना कोई रेस्टोरेंट्स।
मैने कहा, “अच्छा”
उसने कहा,”तू मेरे लिए भी खाना बना देगी प्लीज।”
मुझे जोर से हंसी आ गई।
मैने कहा, “अरे पागल लड़की तुम नही भी बोलती तो भी मैं बनाती। पर तुम्हे समझ आया ना की मैं क्या कह रही थी। सोचो अगर मैं अगर मैं दिवाली पर घर चली जाती तो तुम क्या करती आज, तुम यहाँ किसी को ठीक से जानती भी नही हो। इतने पैसे है तुम्हारे पास कुछ काम आ रहे है क्या? चलो अब दोनो मिल कर कुछ बनाते है।”
हर चीज खरीदी नही जा सकती। किसी की भावनाएं, सच्चा आदर, किसी की कला, मां की ममता खरीदी नही जा सकती। कोई आया किसी बच्चे को मां का प्यार नही दे सकती और अगर देती है तो और भी बुरा है क्योंकि वह बच्चा फिर उस आया को अपनी मां समझेगा। मैं जब अपनी जिंदगी के एक बड़े फैसले में उलझी हुई थी तब एक किस्सा मैने सुना जो मुझे बहुत गहराई तक असर कर गया।
किस्सा यू था की एक आया के काम छोड़ के जाने के बाद, आया जिस बच्चे को संभालती थी उस बच्चे ने खाना बंद कर दिया, क्योंकि उससे उस आया के हाथ से ही खाने की आदत थी। बच्चा उस आया को ही अपनी मां समझाने लगा।फिर उस बच्चे के मां बाप ने दुगने पैसे दे कर उस आया को वापस बुलाया।
जब यह बात मैने अपनी माता को बताई तो वो हंसने लगी। उन्होंने कहा, “देखो बच्चे तो कच्ची मिट्टी के़े घड़े जैसे होते है जैसा आकार दोगी वैसे बन जायेंगे। उनके लिए तो जो उनके पास रहे, उनके हर काम करे वही उनकी मां, वो तो प्यार ही जानते है। बाकी दुनियादारी से उनका क्या लेना। वैसे भीे सिर्फ जन्म देने से कोई मां नही बनता, उनका पालन पोषण अच्छे से जो करे वो उनकी असली मां होती है।”